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Premanand Ji Maharaj Pravachan: (कृष्ण भक्त) नाम निष्ठ श्री हरिदास ठाकुर जी का पावन चरित्र
Premanand Ji Maharaj Pravachan: श्री हरिदास ठाकुर जी का जीवन चरित्र भक्तों के लिए एक अद्भुत प्रेरणा का स्रोत है। उनका जीवन भक्ति, दृढ़ निष्ठा और त्याग का अनुपम उदाहरण है। श्री परमानंद जी महाराज के प्रवचनों के माध्यम से हमें उनके पावन चरित्र को विस्तार से जानने का अवसर मिलता है।
श्री हरिदास ठाकुर जी का जन्म और बचपन: Premanand Ji Maharaj Pravachan
श्री हरिदास ठाकुर जी का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने ईश्वर के नाम का ऐसा अनन्य आश्रय लिया कि वे पूरे जीवनभर भगवान श्रीकृष्ण के नाम संकीर्तन में लीन रहे। बंगाल के शांतिपुर के समीप फुलिया नामक गाँव में वे एक छोटी-सी कुटिया बनाकर निवास करने लगे। वहाँ वे नित्य श्रीहरि के नाम का जाप करते और अपनी साधना में लीन रहते।
धार्मिक कट्टरता और विधर्मियों का शासन
उन दिनों बंगाल में मुस्लिम शासन अत्यंत कट्टर था, जो हिंदुओं पर अत्याचार कर जबरन धर्म परिवर्तन कराता था।
श्री हरिदास ठाकुर जी का जन्म एक मुस्लिम परिवार में होने के बावजूद वे श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त बन गए थे। इससे विधर्मियों को अत्यधिक क्रोध हुआ। उन्हें यह स्वीकार नहीं था कि उनके समाज का एक व्यक्ति हिंदू धर्म के भगवान का नाम ले। उन्होंने श्री हरिदास जी को बहुत समझाने और डराने का प्रयास किया कि वे कुरान शरीफ का पालन करें और इस्लाम को स्वीकार करें। लेकिन हरिदास ठाकुर जी ने स्पष्ट कह दिया कि वे किसी भी स्थिति में हरिनाम का त्याग नहीं करेंगे।
बुराई खान का क्रोध और हरिदास ठाकुर पर अभियोग
फुलिया गाँव के शासक बुराई खान को जब यह पता चला कि श्री हरिदास ठाकुर जी मुसलमान होकर भी “हरे कृष्ण, हरे राम” का जाप करते हैं, तो वह अत्यधिक क्रोधित हो गया। उसे लगा कि यदि इसे दंड नहीं दिया गया तो अन्य मुसलमान भी हिंदू धर्म की ओर आकर्षित हो सकते हैं। उसने बादशाह के दरबार में शिकायत की और कहा कि यह व्यक्ति इस्लाम धर्म का अपमान कर रहा है।बादशाह ने हरिदास ठाकुर को अपने दरबार में बुलाया और उनसे कहा कि वे इस्लाम धर्म का पालन करें तथा हरिनाम संकीर्तन को छोड़ दें। उन्होंने उनसे कुरान शरीफ पढ़ने और मोहम्मद साहब की शरण में जाने का अनुरोध किया। लेकिन श्री हरिदास ठाकुर जी ने बड़े विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया:

सच्चा भक्त न प्रलोभन से डगमगाता है, न भय से। मृत्यु भी आए, तब भी हरिनाम का त्याग असंभव है।
- उनके उत्तर से सभा मौन हो गई।
- न्यायाधीश असमंजस में पड़ गया।
- बुराई खान क्रोधित हो उठा।
- उसने बादशाह से कठोर दंड की मांग की।
भयानक दंड – 22 बाजारों में कोड़ों की वर्षा
आखिरकार, निर्णय हुआ कि हरिदास ठाकुर को 22 बाजारों में घुमाया जाएगा। उन्हें कोड़ों से इतना मारा जाएगा कि वे प्राण त्याग दें। इस्लामिक जल्लादों ने बेरहमी से कोड़े बरसाने शुरू किए।
उनकी पीठ से खून बहने लगा, मांस उधड़ गया, लेकिन उनके मुख से हरिनाम संकीर्तन चलता रहा। जनता इस अत्याचार को देखकर भय और पीड़ा से भर उठी। कुछ लोग क्रोधित हो गए, तो कुछ रोने लगे। लेकिन हरिदास जी मुस्कुराते हुए बोले – “हरि बोल, हरि बोल”।
जल्लादों ने उन्हें लगातार मारा, लेकिन वे बेहोश नहीं हुए। उन्होंने देखा कि हरिदास जी के शरीर पर भयंकर घाव हो गए थे, फिर भी वे जीवित थे। वे आपस में कहने लगे –
“हमने इससे पहले ऐसे अनेक लोगों को कोड़े मारकर मार डाला, लेकिन यह व्यक्ति तो मरा ही नहीं। इसका रहस्य क्या है?”
हरिदास ठाकुर जी ने अपने हृदय में भगवान से प्रार्थना की –
“हे प्रभु ! ये लोग अज्ञानी हैं, इन्हें क्षमा करें और इनका कल्याण करें।”
- जल्लादों ने हरिदास ठाकुर जी को क्रूरता से मारा।
- उनकी पीठ लहूलुहान हो गई।
- फिर भी उनके मुख से हरिनाम संकीर्तन जारी रहा।
- जल्लाद आश्चर्यचकित रह गए।
- इतनी यातना के बाद भी वे जीवित थे।
- उन्होंने बादशाह को सूचना दी।
- यह व्यक्ति नहीं मर रहा है !
गंगा में फेंकने का आदेश
बादशाह ने आदेश दिया कि हरिदास ठाकुर के मृत शरीर को गंगा में फेंक दिया जाए। वे सोचते थे कि यदि कोई मुसलमान हिंदू धर्म स्वीकार कर ले और उसकी मृत्यु हो जाए, तो उसे इस्लामिक परंपरा के अनुसार दफनाने से वह स्वर्ग नहीं जा सकेगा।
लेकिन जैसे ही हरिदास जी को गंगा में प्रवाहित किया गया, गंगा माँ के पवित्र जल का स्पर्श होते ही वे पुनः चेतना में आ गए और जीवित हो उठे। वे गंगा किनारे आ गए और पुनः हरिनाम संकीर्तन करने लगे। जब लोगों ने यह चमत्कार देखा, तो वे अचंभित रह गए।
बादशाह की क्षमा याचना
बादशाह हरिदास ठाकुर जी के जीवित रहने से भयभीत हुआ और क्षमा मांगते हुए उनके भजन-कीर्तन पर प्रतिबंध हटा दिया।
अद्वैताचार्य जी से भेंट और जीवन का अंत
हरिदास ठाकुर जी शांतिपुर में रहने लगे। अद्वैताचार्य जी ने उन्हें पुत्रवत स्नेह दिया। उनकी भक्ति की ख्याति पूरे बंगाल में फैल गई। श्री चैतन्य महाप्रभु के प्रिय भक्त बन गए। वे सदैव हरिनाम संकीर्तन में लीन रहते। भक्तों को भक्ति के मार्ग पर प्रेरित करते। महाप्रभु के संग रहकर भक्ति का प्रचार किया। जीवन के अंतिम क्षणों में हरिनाम लेते हुए प्राण त्याग दिए। उनकी भक्ति और त्याग आज भी प्रेरणास्रोत हैं।
Premanand Ji Maharaj Pravachan: श्री हरिदास ठाकुर जी की अमर कथा
- श्री हरिदास ठाकुर जी की कथा हमें भक्ति की महिमा सिखाती है।
- सच्चा भक्त कठिनाइयों में भी भगवान का नाम नहीं छोड़ता।
- उनका जीवन धैर्य और निष्ठा का अनुपम उदाहरण है।
- वे हर परिस्थिति में हरिनाम संकीर्तन करते रहे।
- उनकी भक्ति ने अत्याचार को भी पराजित कर दिया।
श्री हरिदास ठाकुर जी की जय !
हरे कृष्ण! हरे राम !
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